Wednesday 14 March 2012

संजय पुरोहित की कविताएं

मित्रो! उदाहरण में आज आपके सामने हैं संजय पुरोहित। संजय मूलत: कथाकार है लेकिन इधर  कु्छ समय से उन्होंने कविता में भी अपनी पहचान बनायी है। संजय की कविता अपने भीतर और बाहर से साक्षात की कविता है। उनकी कविता आम आदमी की पीड़ाओं  का बयान करती हुयी कोमलता से कठिन और कठोर सवाल करती है….. उनकी अनुभूति संवेदनाओं को टटोलती हुयी अभिव्यक्त होती लगती है। उनकी कविता चमत्कारी उलझावों से मुक्त बेबाक कविता है ….
सीढ़ियां उनको, जो हैं जात के पिछड़े
बंधे हैं काबिलों के पैर, कमाल है मौला

संजय पुरोहित । जन्म 21.12.1969 एम.कॉम. (व्यावसायिक प्रशासन), एम.ए. (अंग्रेजी साहित्य), एम.जे.एम.सी., बी.एड.
‘‘बावरा निवास‘‘, समीप सूरसागर झील, मेजर जेम्स विहार, धोबीधोरा,
बीकानेर-01
09413481345 (मोबाईल)
sanjaypurohit2112@gmail.com ,oa sanjaypurohit4u@yahoo.co.in
sanjay-purohit.blogspot.com
 प्रकाशन - मधुमती, वर्तमान साहित्य, हंस, दैनिक भास्कर, द ट्रिब्यून(हिन्दी), हिन्दुस्तान टाईम्स, पंजाब केसरी, युगपक्ष, अग्रदूत,कश्मीर टाईम्स, दैनिक मिलाप, अग्रदूत, पायलट, उत्तर उजाला, समीचीन,अनुकृति, युग तेवर, शुभ तारिका, विकल्प, दैनिक हिन्दु (मेरठ),व्यंग्य यात्रा, चेतांशी, समीचीन, माणक, पालिका समाचार आदि देश की लगभग सभी लब्ध- प्रतिष्ठ पत्र-पत्रिकाओं में संजय की रचनाएं प्रकाशित होती रही हैं। इसके अलावा ‘कथांजलि‘ (हिन्दी कहानी संग्रह) (राजस्थान साहित्य अकादमी, उदयपुर द्वारा वित्तीय सहायता वर्ष 2008-09 के अन्तर्गत प्रकाशित )  आकाशवाणी बीकानेर में वर्ष 1990 से 1995 तक आकाशवाणी में युववाणी कम्पेयर व प्रसारण आकस्मिक उद्घोषक के रूप में कार्य किया। इसके उपरान्त इन्टरनेट की वेब पत्रिकाएं साहित्यकुंज, सृजनगाथा, अनुभूति-अभिव्यक्ति, आखरकलश, रचनाकार, नेगचार में कहानियां, कविताएं, लघुकथाएं व साहित्यिक रिपोर्ट्स का प्रकाशन।
सम्मान - गणतंत्र दिवस पर मैथिलीशरण गुप्त युवा लेखन पुरस्कार- वर्ष2009, जिला प्रशासन द्वारा मंच संचालन के लिए सम्मानित 2007,राव बीकाजी संस्थान, बीकानेर द्वारा प.विद्याधर शास्त्री अवार्ड 2010,बीकानेर रत्न सम्मान 2005, अखिल भारतीय सरला अग्रवाल कहानी लेखन प्रतियोगिता 2008 का प्रथम पुरस्कार, ज्ञान फाउण्डेशन ट्रस्ट बीकानेर आदि अनेक संस्थाओं द्वारा सम्मान एवं सराहना। विभिन्न साहित्यिक, सांस्कृतिक, सामाजिक एवं विविध कार्यक्रम समारोहों में मंच संचालन कार्य का विपुल अनुभव। स्थानीय टीवी चैनल के लिए अनेक सांस्कृतिक कार्यक्रमों का संचालन,रिपोर्टिंग। राजकीय गणतंत्र दिवस, स्वतंत्रता दिवस, राजस्थान दिवस, बीकानेर स्थापना दिवस, दशहरा का गत सात वर्षांे से संचालन। पर्यटन विभाग, राजस्थान के ऊॅंट उत्सव, बीकानेर, कोलायत फेयर (कोलायत) गोगामेड़ी (हनुमानगढ) में गत पॉंच वर्षों से उद्घोषक।

संजय पुरोहित की कविताएं

आंसू (एक)

मोती श्वेत झिलमिलाते
अमूल्य !
अमूल्य इसलिए
कि ये झरते हैं
उस विपन्न के नेत्रों से
कि जो पहर दर पहर
हाड-तोड़ परिश्रम पर भी
नहीं बुझा पाता
भूख कृशकाय कुनबे की
तुम्ही बताओ
क्या इन मोतियो
इन आंसूओं का
कोई मूल्य हो सकता है भला
*****

आंसू (दो)

आंसू विभिषण बन
अंतस के
भेद बताए
दफन यादों की
कब्र पर
शबनम बन
उभर आए
ह्दय के
कृष्ण को
शुक्ल बन दरसावे
आंसू
क्या कम है विभिषण से

जो अंतस की लंका जलावे
*****

आंसू (तीन)

पतंगे की नियति
शमा से मिलन
और मिलन से
मृत्यू
शमा विरहणी ज्यूं
स्वदाहरत
पिघलाती काया
और छलकाती
अपने आंसू
तरल, तापित, निश्छल
जो क्षण भर में हो जाते हैं
पिलपिले ठोस श्वेत
और दर्ज हो जाते हैं
बचाव पक्ष के
गवाहों की सूची में
जिन्हे देनी होती है
शमा के त्याग की
गवाही
मौन अदालतों में
*****

आंसू (चार)

आंसू
भावों में लिपटे
जल में सिमटे
रसों में चिपटे
ममत्व को पुकारते
पार्थिव को स्वीकारते
स्नेह को आकारते
आंसू तुम अभिनेता
दुख को उगलते
और निगलते भी
सच को बताते
और छिपाते भी
आंसू
तुम कितने
विविध रूप रूपाय हो
*****

रचाव

मेरे उदास आंसू
पलकों के सिरहाने
बोझिल नयनों
के द्वारे
धो रहे पुतलियों की राह
कि मैं बिसराऊँ
उन क्षणों को
जो मेरे पोरों से
रच ना पाए
सत्य दर्पण
आखरों का गट्ठर
ढोते हुए
अर्थों को बिठला
ना पाया
रचाव की
टाटपट्टी पर
नयनों के अमृत कलश
से उबली बूंदों ने
छन्न से कर डाला
अन्तर्दृष्टि को
विराट, विशाल
और मैं
महसूसने लगा
सनसनाहट
अपनी कलम के
छोर पर
*****


निर्लिप्त

लो, फिर आ गई कालिमा,
फिर सुनाई देने लगा हैं,
गुंजन बिसरे पलों के झिंगुरों का
फिर से लगा है दिखने,
टिमटिमाना यादों के जुगनुओं का
गुम्फित फिर होने लगा हृदय
कहे-अकहे भावों से
स्मृतियां लेती अंगड़ाईयां फिर
हो रही तत्पर
लेने मुझे आगोश में
छोड़ आया था मैं जिन्हे
दूर, बहूत दूर
शून्य के बियाबान में,
सहसा मैंने पाया
स्वंय को मनुमंच पर
देखते ही देखते
पात्र आए खेलने
उभरा हुआ सा मेरा अतीत
खेल रहा है आज से
आज की अठखेलियों पर,
मुस्कुराता सा कल
इस खेल का मैं अनाड़ी
रह गया निर्लिप्त केवल!
रह गया निर्लिप्त केवल!!

*****

एक गज़ल

मयस्सर नहीं साफ पानी अवाम को
पी रहे वो बोतलें, कमाल है मौला

लूटते जो खजाने, मुल्क के जी भर,
फिर चुनावों में फतह, कमाल है मौला

लुट के भी नहीं चढ़ता कभी चौकी
वर्दी का ये रूआब, कमाल है मौला

ईलाज बिक रहे, शहर की अस्पतालों में,
हकीमों की तिजारत, कमाल है मौला

सीढ़ियां उनको, जो हैं जात के पिछड़े
बंधे हैं काबिलों के पैर, कमाल है मौला
*****


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